Sunday, May 1, 2016

शब्दों के मोह पाश



शब्दों के मोह पाश,
अनगीनत भावनाओं को फांस

लबों पर उफान, और 
देखो पतिले की शान

क्यूँ है मौन जमा;
किस नुकते की फरयाद वहाँ

किस रंज में कुरेदे है 
जमा पूंजी मुख्तार वहाँ

शब्दों के मोह पाश,
अनगीनत भावनाओं को फांस

दावात समुन्दर का,
फिर भी आस पर आस

क्यूँ डरती है, लौ;
रात के मौन से

किस लहर की पेशी है,
समुन्दर भरी संसार में

शब्दों के मोह पाश,
अनगीनत भावनाओं को फांस

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