तमाम बंदिसे
तोड़
कर
भटकता रहा
गुमशुदा की तलाश में
उस पल का इंतेजार
टीसता रहा
खूने जीगर में
ना जाने कौन
पुकारता है वहां
बार बार .
.अनकहे लफ्जों से
एक टक झाँकता
कौन है वहाँ देखता
कब तलक
रौनक नसीब आएगी
क्या जिन्दा रहूँ मरने तलक
इसी एक साँस की खुसबू ने
बचा रखा है
जिसमे फ़रोस हमारा
वरना कब से
रख रखा है मुझे
उसकी नुमाइस में
भटकता रहा
गुमशुदा की तलाश में
उस पल का इंतेजार
टीसता रहा
खूने जीगर में
ना जाने कौन
पुकारता है वहां
बार बार .
.अनकहे लफ्जों से
एक टक झाँकता
कौन है वहाँ देखता
कब तलक
रौनक नसीब आएगी
क्या जिन्दा रहूँ मरने तलक
इसी एक साँस की खुसबू ने
बचा रखा है
जिसमे फ़रोस हमारा
वरना कब से
रख रखा है मुझे
उसकी नुमाइस में
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