हे त्रिपुरारी
हे जग के पालनहार
हर्षित कर
उद्वेलित मन के विकार
हर्षित कर
शांत पहर का
विराट प्रहरी
पूर्ण कर
आस्था का
सम्यक विस्तार
काल की
वमनस्य बेला में
हरित कर
तपित भूमि का
रुदन विलाप
विहुल हूँ
अश्रुधार जलप्रपात लिए
अपने दर्शन का
एक आस बंधा
नभ के हर स्पर्श को कुन्दन कर
हे त्रिपुरारी
मन हर्षित कर...
No comments:
Post a Comment