Tuesday, March 19, 2019

तन्हाई



एक तन्हाई
दबी सी, सहमती
चली जाती है

बैरन 
कोई बैरी  हुआ जाता है
भींच कर
ओंठों  को
सूर्ख लाल किया जाता है

अपने पराये  का
भार
लोप किया जाता है

अदृष्य
कोई अदृष्य हुआ जाता है
रूँधती  कण्ठ  का
अश्रूपुर्ण
हार बना जाता है

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