Tuesday, July 25, 2017

दोआब



दोआब के बीच का
यह सूखा प्रदेश
पतझड़ ले कर आया है
जड़ से फ़ुनगी तक
एक गहरा एहसास लेकर आया है

समुन्दर ज्वार भाटों का
अट्हास काले बादलों का
लेकर सभी हूनर
जुदाई का; ये जहां
ग़मों का एतबार करने आया है

खड़ी है जिन्दगी
सहमे हुए पलकों पर
रेत ही रेत है
आंसुओं के हर फास में
चेहरे झुलसे हुए दिखाई देते हैं

No comments: