दोआब के बीच का
यह सूखा प्रदेश
पतझड़ ले कर आया है
जड़ से फ़ुनगी तक
एक गहरा एहसास लेकर आया है
समुन्दर ज्वार भाटों का
अट्हास काले बादलों का
लेकर सभी हूनर
जुदाई का; ये जहां
ग़मों का एतबार करने आया है
खड़ी है जिन्दगी
सहमे हुए पलकों पर
रेत ही रेत है
आंसुओं के हर फास में
चेहरे झुलसे हुए दिखाई देते हैं
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