Wednesday, June 14, 2017

चरागदार



अकिञ्चित मन को
एक ठोर देता हूँ
अपनी साया को छोड़
किसी मायावी को पकड़ लेता हूँ

अनगिनत रक़्स है
आशय की इस छोर पर
बादल जहां गुमरते हैं
दिल वही छोड़ देता हूँ

अकिञ्चित मन को
एक ठोर देता हूँ
एक फानूस के शाये में
अपने आप को गिरे पाता हूँ

बेज़ार सी लगती है
रंग रोगन की चारदीवारी
चले जाते हैं हम
बुझाने वाले चरागदार के पास

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