Monday, March 6, 2017

मेरी रेलगाड़ी



कितना ममत्व लिए
यह चलती है
एक-दो नहीं, बारह-चौबीस बच्चों के साथ;
आवाज़  देती, पुचकारती
रुक रुक कर  खाना खिलाती
पोषित करती, मेरी
यह रेलगाड़ी

नज़र में गंतव्य लिए
पटरियों के सहारे से हल करती
अथक  दौड़ती
पानी या बरसात; बरसाती पहन
बच्चों  को ठण्ड और ज़ुकाम से  बचाती
गर्मी से राहत देती, लिमका पिलाती है
पैंट्री से गरमा-गरम, और
गलियों में धुन बजाती, मेरी
यह रेलगाड़ी

कितना ममत्व लिए
यह चलती है
परिवार से मिलती
आँसू पोछती
बिछरे पल को
अजनबियों से मिलती
किलकारियों की ओट में सहज भाव लेती
दुःख सुख को सहृदय से लगाती,
यह चलती है, चलती ही रहती है

ममत्व की पहचान है
एक अदृश्य को दृष्टि देती
वर्तमान को भविष्य से मिलाती
हज़ार बाहें फैलाये
बच्चों को बहलाती है
ममता की इन्द्रधनुषी रंग में
परिवार को संजोती है,
यही वो है, यही  वो है

No comments: