एक दीये के लौ ने
ह्रदय को प्रकाशमय बना रखा है
निमित्त उसकी साधना में
एक विराट को समाहित कर रखा है
निर्लिप्त परे
आकाश मंडित गूढ को
पंचतत्व रूपी शरीर में
समा कर रखा है
अकिंचित भोगी 'मैं' को
अश्रुधार लिए
प्लावित कर
अपने स्नेहातित से सम्पन्न कर
एक दीये के लौ ने
हृदयाकाश में
सैंकड़ो आकाशगंगा को
फैला रखा है
No comments:
Post a Comment