Wednesday, February 1, 2017

हृदयाकाश



एक दीये के लौ ने
ह्रदय को प्रकाशमय बना रखा है
निमित्त उसकी साधना में
एक विराट को समाहित कर रखा है

निर्लिप्त परे
आकाश मंडित गूढ को
पंचतत्व रूपी शरीर में
समा कर रखा है

अकिंचित  भोगी 'मैं'  को
अश्रुधार लिए
प्लावित कर
अपने स्नेहातित से सम्पन्न कर

एक दीये के लौ ने
हृदयाकाश में
सैंकड़ो आकाशगंगा को
फैला रखा है

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