Tuesday, June 28, 2016

दीदार



उसके दीदार से
बेजान पथरों में भी
कोंपले फूट निकल आती हैं

लहजे ए नूर की कसम
टूटे पत्तों से भी
अाफताब के दिन निकल आते हैं

अशफ़ाक ए इश्क की क्या कहें
लहू भी दरिया बन
अश्क बहाने लगती हैं

अब्र को अब चैन कहां
फ़साने भी
आशमाँ बारसाने लगते हैं

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