Thursday, May 8, 2014

रुँधी सी हँसी


वक़्त बेखबर बेपरवाह
रुँधी सी हँसी और न जाने
अनगिनत वार
लब्ज़ों को सिलते हैं
तमन्ना उन बातों की नहीं
जिनकी रंगत से बहार होती है
तमन्ना उन लहरों से है
जिनकी हर एक बात पर सदियाँ झूलती हैँ
फ़नकार में अब वो बात कहाँ
जो वक़्त को अल्फाज़ दे
वरना क्या पड़ी थी मुझे
उसे रोकने की

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