इसी जिद्ड़ो जहद मे
रफ़्ता रफ़्ता
गुजर जाते हैं
ये दिन और रात
ना जाने
एक सहमी सी
आवाज़ वहाँ
देता है, कौन
बिताए पल
की बेवफ़ाई
लब पर चोट
करती है
कौन यहाँ
जिता है
मरने तलक
मौत की खुसबु
हर घर से
मसाले रौशन
नज़र आती है
आस फिर, दोबारा
लौटती नहीं
लमहों के
इस खेल में
ख़ाक-ए-बुत के
गुजर जाने के बाद
हवाओं के झोंकों से
मेरा पता पूछते हो!
रफ़्ता रफ़्ता
गुजर जाते हैं
ये दिन और रात
ना जाने
एक सहमी सी
आवाज़ वहाँ
देता है, कौन
बिताए पल
की बेवफ़ाई
लब पर चोट
करती है
कौन यहाँ
जिता है
मरने तलक
मौत की खुसबु
हर घर से
मसाले रौशन
नज़र आती है
आस फिर, दोबारा
लौटती नहीं
लमहों के
इस खेल में
ख़ाक-ए-बुत के
गुजर जाने के बाद
हवाओं के झोंकों से
मेरा पता पूछते हो!
No comments:
Post a Comment