Tuesday, May 12, 2015

लब्ज



किस सवाल पर
ज़िरह करने का ख़्वाब देखते हो जनाब
सारे पैबन्द एक अजायबघर की हीं तो नुमाइश है!
ढूंढ ढूंढ कर जर्रे जर्रे में अदा फरमाते हो,
कभी मुस्कान लिए देह को बिलसाते हो !

किस वार की
याद ताज़ा करने को ललकारते हो जनाब
गुमशुदा की तलाश अखबारों में बेचते हो!
चुन चुन कर दीवारों पर रंग भरते हो,
कहीं दाग कहीं दर्द के निशान भी छोड़ देते हो

किस मांग की
आँचल सुनी करने पर आमादा हो जनाब
भय को तराश कर सीना फूलते हो!
फाणी है यहाँ जिंदगी की हर हाफ्ज़,
लबों को सील कर कब्र में छुप जाते हो!

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