Saturday, October 11, 2014

रब दा वास्ता

हजार तन्हाई वीच
ओंठ लब्दी है

मुकदी नहीं, इबादत
की हज़ार मिन्नतें

गल जो, मैंनू
खामोशी से
सराबोर कर गई ,
मेरे दिल वीच  मुकदी है

करदे हैं सब
फकीरां दी गल्लां ,
बेपर्दा वक़्त भी
नज़रें मोड़ लेंदी है

मैंनू की लोर पै गई !
हज़ार बार लफ्ज़ वीच
"रब दा  वास्ता "
हिलोर करदी है !

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