लब्ज़ों को सिलती हैं
दर्द भरी आहें
दुआ भी करता हूँ
तो हूनर भी
वक़्त माँगती है
मोहताज़ मुझे रखकर
कब तक ईद मानोगे
हर सै पर चोट करके
कहते हो फ़रमाने
मोहब्बत है
उस नाचीज़
से पूछो नाज़ाँ
जिस पर गुजरती है
मजारें वहीँ
बोलती हैं
दर्द भरी आहें
दुआ भी करता हूँ
तो हूनर भी
वक़्त माँगती है
मोहताज़ मुझे रखकर
कब तक ईद मानोगे
हर सै पर चोट करके
कहते हो फ़रमाने
मोहब्बत है
उस नाचीज़
से पूछो नाज़ाँ
जिस पर गुजरती है
मजारें वहीँ
बोलती हैं
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