कुछ और भी हवा दे दे
ओ ज़हां वाले
बुझती चिराग को
ना जाने कब
कब्र की नसीब होगी
साए के नमी
के सहारे
जीवन कब तलक
रौशन होगी
अब तो वही
छल गया
जिसे खवाब में
कभी
साथ पाया था
उसी लौ ने
सारी उस्मा ले ली
जिस उषा
के सहारे
दिन हुआ करता था!
ओ ज़हां वाले
बुझती चिराग को
ना जाने कब
कब्र की नसीब होगी
साए के नमी
के सहारे
जीवन कब तलक
रौशन होगी
अब तो वही
छल गया
जिसे खवाब में
कभी
साथ पाया था
उसी लौ ने
सारी उस्मा ले ली
जिस उषा
के सहारे
दिन हुआ करता था!
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