कीतने महफूज़ थे
इन संजीदा लम्हों में
कोई पास आए ना आये
पर, तरन्नुम की लहरें
बहती थी अनजाने
अनकहे वादियों में
टपकते थे लहू
तो लोग समझते थे आँसू
भला मैंने भी डूब कर
देखा था इन तन्हाईयों को,
कभी ये झुलसाती गम
कभी वो बिलखती रातें
फल्सफा बस इतना
की कभी
दीदार ए क़यामत से
लबरेज़ कर दे
मुकम्मल जहां हमारा
इन संजीदा लम्हों में
कोई पास आए ना आये
पर, तरन्नुम की लहरें
बहती थी अनजाने
अनकहे वादियों में
टपकते थे लहू
तो लोग समझते थे आँसू
भला मैंने भी डूब कर
देखा था इन तन्हाईयों को,
कभी ये झुलसाती गम
कभी वो बिलखती रातें
फल्सफा बस इतना
की कभी
दीदार ए क़यामत से
लबरेज़ कर दे
मुकम्मल जहां हमारा
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