Friday, September 6, 2019

आँचल



सुनसान  राहों पर
निश दिन उनकी आने की
एक आहट  सी गुजरती है
मिलन की अप्रतिम, अदृष्य
आस जगाती है

कभी तो आओ 
दुलार हांथों का
उपहार लिए 
सूनी सी सूनी  है
टहनियों पर पत्तों  का
आँचल से विमुख होना

सालती है
तेरी निशान पर
आश्रित, टीमटीमाती
आंशुओं का
अटूट फलक विस्तार -
निश दिन यूँ हीं टपक जाना

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