Friday, September 6, 2019

शिकस्ते-ख्वाब



बड़े  जुल्म  सहे  हैं
बकदरे  अस्क  ने
फिज़ा  में  शिकस्ते-ख्वाब  का  अब
प्याला  ढूंढते  हैं

ना  शिकवा  ना  शिकायत  रही
हिज्र  में  बाकी  उनसे
अब  उसकी  पैमाइस  का 
आसमां  में  जगह  ढूंढ़ते  हैं 

ना  सोज  ना  तासव्वुर  उनका 
एक  लपट  सी  लीपटी  है  बेगैरत
बुझते  चराग  की  तरह
ज़िन्दगी  का  रुख्सत हो  जाना

.............
पैमाइस = measurement
सोज = burning
तासव्वुर = dream
रुख्सत = take leave

No comments: