Wednesday, September 4, 2019

माँ, मैं हीं हूँ ...



सरल, सह्रिदय 
पुण्य आत्मा

वंदनम

आजकल उनका ध्यान
अपने आप में समाया रहता है
पुराने समय की याद ताजा रहती है -
अपनी माँ को खोजती है
ज़िसे गुजरे वर्षों बीत गए (मेरी नानी)

कमज़ोर है
सिर्फ अस्थी है -
मेरी माँ अस्सी साल की वृद्धा है

बचपन टटोलती है -
मुझसे कहती है
गुलाब जामुन, छेना की मीठाई लेते आना, बाबू ;
आज
मेरा मन खाने को कर रहा है

मैं रूँधी आँखों से
झट बाजार जाता हूँ -
उनके लिए मिस्ठान और पेय पदार्थ लेकर आता हूँ
अपने हांथों से माँ को खिलाता हूँ

... बस और नहीं लिखा जा रहा.
मेरा कन्ठ  रूँधा जा रहा है ...

माँ, मैं हीं हूँ
तुम्हारा पुत्र 

चरण वन्दनम्  माँ

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