Wednesday, September 4, 2019

शहर-ए-रानाई



उनकी हर बातों का नजराना
अब मैं क्या पेश करूँ 
मैं खामोश रहता भी हूँ तो
एक आहट सी सुनाई देती है

शमा जलती भी है तो
नूर-ए-आफताब की तरह
दरिचे उम्र में रखा क्या है
जहाँ पूरा आसमाँ खाली है

सजा का हकदार मैं भी हूँ
और तुम भी
शहर-ए-रानाई  मुझ में भी है
और तुझ  मैं भी

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