Wednesday, September 4, 2019

लिखावट



मेरी लिखावट 
अब सुन्दर और सुडौल नहीं रही
वो दिन जब
सरकन्डे से बनी लम्बी कलम को
लकड़ी की स्कूली तख्ती पर लेखनी लिखते थे
खूब खेला करते थे
मन लगता था -
गणित क्या, इतिहास क्या
अंग्रेजी और हिन्दी
की भी मान रखा करते थे
अन्त में नीचे बची खाली जगह पर
चित्रकारी भी किया करते थे
और अनचाहे  मन से मिटा भी दिया करते थे
और जब
जिभी और दावात का समय आया 
चमकती नीब को गहरे नीले रंग की सुलेखा स्याही में
खूब डूबो-डूबो लिखते थे
वर्तनी के हर अक्षर को
एक आकृती देते थे
सीधा हो य़ा तिरछा
सिर भी साथ-साथ ड़ूलाते थे
सपने भी कलम के आते थे
साथियों से होड़ लगता था
सुन्दर लिखावट लिखने का
स्याही की शुगंध
पूरे कमरे में तितली की तरह फैलती थी
कि कोई कहानी, या फिर कविता
फूलों के रंग-बिरंगी दुनिया में
बहा ले जाती थी
मन को बाग-बाग कर जाती थी

मेरी लिखावट 
अब सुन्दर और सुडौल नहीं रही...

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