Wednesday, September 4, 2019

बोझ



एक अपने का बोझ लिए
कौन किसे बिसराये रे
जीवन की छनभन्गुरता
किस आस लिए तड़पाये रे

एक प्याला जीवन का
किस किस का पान कराये रे
इस बुझती प्यास का
अंत कहाँ से ले जाये रे

निर्बोध इस मोही का
कौन कौन पथ भटकाये रे
एक अपने का बोझ लिए
किस किस को सताये रे

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