Tuesday, July 24, 2018

करवटें



बड़े सुकून से सोते हैं
रात में परिन्दे यहाँ
एक मैं हूँ
जो पंख फैलाये जाता हूँ

हज़ार नमाज़ों में
सजदा करता फिरता हूँ मैं
एक अज़ान सी सुनाई देती है
कहीं दूर चारागर लिए हुए

वक़्त ने मुझे बदरंग किया
रात दिन नवाजते  हुए
वरना कमी नहीं थी
स्याह भरी रंगों की वहाँ

अभी भी सालती है
करवटें बदलना उनका
अनकहे पहलूओं में
क्या दर्द छुपा रखा है 

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