Monday, August 26, 2019

महिमा-गान

खुली खुली सी, थकती 
अर्ध-सुप्त आँखें
भावातित से परे
निह्शब्द 
निर्झर
तकती है
क्षितिज की ओर
विन्यस्त
मूक विन्यास लिए
 
अंतिम क्षण का, सजल
बोध कराती 
चली है 
चली है कहीं दूर
गगन की छाॅव में
एकाग्र
अग्रसित
शुन्य
महिमा-गान लिए

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