Wednesday, December 27, 2017

सबूत



कहाँ खोया है तू
मेरे सांसों की मात्र बानगी लिए
अब और क्या शेष बचा है
मरते - ज़ीते
खण्ड अखण्ड का भेद  लिए

अपने ही तो हो तुम
अभी ही तो मैनें  बांधा था तुझे
अपने ठुंठ से गिरी हुई पत्तियों की तरह
अब क्यों विचलित है तू
हमी हैं जो मरते हैं

कौन हो तुम
अपना वर्चस्व कायम किये
दिशा का भ्रम लिए हुये
अभी एक शाम और छोड़ जा
मेरे ड़ूबने का सबूत लिए हुये

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