Friday, December 30, 2016

कोमलता



सुबकते  हुए;
आँचल   में  तेरे
मैंने
ममतामयी  हांथों  को
मुहँ टटोलते
और ,
भला  कहीं  पाया  है

झुर्रिया  बन  चेहरे की
मैंने  तुझसे   सुन्दर
और,
भला  कहीं  देखा  है

तुम्हीं  हो  न  माँ
जिसने 
गरजते -बरसते  ज़माने  को
करवटे  बदलते  महसूस  किया  है

सुबकते  हुए;
पैर तले  तेरे
मैंने
फटे  हुए  एड़ियों  को
सहलाते 
और ,
भला  कहीं  देखा  है

एक  बून्द
गर्म  सांसों  की
और,
भला  अपने  गालों  पर  कहीं  पाया  है

तुम्हीं  हो  न  माँ
जिसने
कराहों को
अपनी  कोमलता तले छुपा रखा है

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